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आंवला नवमी की कहानी |
आंवला नवमी की पौराणिक कहानी एवं पूजा विधी ~
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवमी तिथि से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं । आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के साथ साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है और इस तिथि को अक्षय नवमी या कुष्मांड नवमी भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन गंगाजी में स्नान, पूजा, हवन, तर्पण और दान पुण्य करने से मनुष्य को मनचाहे फलों की प्राप्ति होती है, अगर आप नदी में जाकर गंगा स्नान नहीं कर पाते हैं तो नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर घर पर ही स्नान कर सकते हैं ऐसा करने से आपको भी गंगा स्नान करने जितना पुण्य प्राप्त होगा । आज के दिन लोग आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं और आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाते हैं, ऐसी मान्यता है की आंवले के वृक्ष के नीचे ही भगवान को भोग लगाने के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण भी करना चाहिए, ऐसा करने से जाने अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु के साथ ही माँ लक्ष्मी जी भी बहुत प्रसन्न होती हैं और भक्तों का जीवन खुशहाल बना रहता है । पूजा करने के लिए अगर आपको आंवले का पेड़ नहीं मिल पाता है तो आज के दिन आप आंवले की टहनी को किसी गमले में लगाकर तब भी पूजा कर सकते हैं और अगर टहनी भी ना मिल पाए तो आंवले के फलों की पूजा करके आप उनको भगवान को भोग में अर्पित भी कर सकते हैं ।
आंवला नवमी पर पूजा विधी -
महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नानादि से निवृत्त होने के बाद आंवले के पेड़ के पास जाएं उसके आसपास साफ सफाई करके आंवले के वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर आंवले के वृक्ष की जड़ में कच्चा दूध अर्पित करें, पूजन सामग्रियों से जैसे धूप, दीप आदि से वृक्ष की पूजा करें और तने पर कच्चा सूत या कलावा सात बार परिक्रमा करते हुए लपेटें । कुछ जगह पर परिक्रमा 108 बार भी की जाती है तो आप चाहे सात बार या 108 बार परिक्रमा कर सकते हैं । परिक्रमा करने के बाद आपकी जो भी मनोकामना है उसकी पूर्ति के लिए आप प्रार्थना कर सकते हैं फिर परिवार और संतान की सुख समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे बैठकर ही परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है अगर भोजन करना संभव ना हो या बनाना संभव ना हो तो आप आंवले के फलों का सेवन भी पूजा करने के बाद कर सकते हैं । आज के दिन आंवले का पौधा या आंवले का फल दान करना बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है ऐसा करने से व्यक्ति को धन, विवाह, संतान और दाम्पत्य जीवन से जुड़ी हुई जो भी समस्याएं हैं वो तो दूर होती ही है,साथ ही हर प्रकार की सुख समृद्धि भी प्राप्त होती है । आंवले के पेड़ की पूजा करने से या आंवलों का दान करने से गऊ दान करने जितने पुण्य की प्राप्ति होती है ।
कहानी -
एक समय की बात है किसी नगर में एक सेठजी और सेठानी जी अपने पांच बेटे और पांच बहुओं के साथ रहते थे । सेठजी और सेठानी जी बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के थे उनके पास इतना सोना, चांदी, रुपए-पैसा आदि था कि उसे रखने के लिए उन्होंने नौकर चाकर रखे थे, जो उस धन को तराजू में तोलकर रखते थे । सेठानी जी का एक नियम था वो हर रोज़ सुबह पूजा करके सोने का एक आंवला दान करती थी, उसके बाद ही वो खाना खाती थीं इस तरह सेठ सेठानी आराम से अपना जीवन गुजार रहे थे । एक दिन सेठानी जी की बहू ने सोचा यदि माँ इसी तरह सोने का आंवला दान देती रहेंगी तो हमारे लिए तो कुछ भी नहीं बचेगा । अब बहुओं ने मिलकर सासुर जी से कहा माँ सोने के आंवले की जगह एक सादा आंवला दान किया करे और खाना खा लिया करें । सेठानी जी ने बहु की बात मान ली और अब वो रोजाना एक सादा आंवला दान करने लगी । कुछ दिनों बाद बहुओं को सेठानी जी का सादा आंवला दान करना भी अखरने लगा अब वो सेठानी जी को सादा आंवला दान करने से भी रोकने लगी । इस बात से सेठजी और सेठानी जी को बहुत दुख हुआ अब वो अपना घर छोड़कर निकल गए । सेठजी और सेठानी जी चलते हुए जंगल में पहुँच जाते हैं उस दिन सेठानी जी ने आंवला दान नहीं किया था, जिसके कारण उन्होंने खाना भी नहीं खाया था जंगल में पहुँचकर वो एक घने पेड़ के नीचे सो जाते है । सुबह उठकर वो देखते है की भगवान की कृपा से वहाँ सोने के आंवले का एक पेड़ आ जाता है, सेठानी जी ने पेड़ से आंवला तोड़ा और दान करके खाना खा लिया । अब वह दोनों वही अपना घर बनाकर रहने लगे, धीरे धीरे सेठजी का व्यापार बढ़ने लगा और वापस उनके पास खूब धन दौलत हो जाता है और सेठानी जी फिर से रोज़ की तरह सोने का एक आंवला दान करने लग जाती है । इधर सेठजी और सेठानी जी के घर से जाते ही उनके बेटे और बहुओं में आपस में झगड़ा होने लगा, जिसके कारण उन्हें व्यापार में घाटा हुआ और सारी पूंजी खत्म हो गईं । उन्हें मजदूरी करने के लिए घर से निकलना पड़ा, काम की तलाश में घूमते घूमते वो सेठजी और सेठानी जी के पास पहुँच जाते हैं । उन्हें जब सेठानी के सोने का आंवला दान करने की बात पता चलती है तो वो मन में सोचते हैं कहीं ये हमारे माता पिता तो नहीं लेकिन फिर वो सोचते हैं कि उनके पास कुछ भी नहीं था वो कैसे हो सकते हैं । एक दिन बेटे सेठ जी को देख लेते हैं और उनके पास आते हैं और उनसे माफी मांगकर कहते हैं पिताजी पैसों के लालच में हम अंधे हो गए थे और हमने आपको घर से जाने दिया जबकि उस घर में सब कुछ आपकी किस्मत का था । सेठजी अपने सभी बेटों को माफ़ कर देते हैं और सेठजी सेठानी जी अपने सभी बेटे और बहुओं के साथ रहने लगते हैं ।
जय विष्णु भगवान की ।
जय कार्तिक महाराज की ।
जय लक्ष्मी जी की ।
जय गजानन जी की ।

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