पवित्र कार्तिक मास कथा-21 पूर्णिमा/त्रिपुरारी पूर्णिमा की कहानी/Pavitra kartik month story-21 Purnima/Tripurari Purnima story

 

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कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक पूर्णिमा/ पूर्णिमा की कहानी ~

  कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखना बहुत ही शुभ माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है । इस दिन भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु जी की सहायता से त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था, कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही समस्त देवी देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और गंगा स्नान करके दीपोत्सव मनाते हैं, कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन यज्ञ आदि का विशेष महत्त्व होता है । कहा जाता है कि इस दिप दान का फल दोगुना होता है । कार्तिक पूर्णिमा से कई कथाएं जुड़ी है जो निम्न हैं -

 कार्तिक पूर्णिमा की पहली कथा ~ 

प्राचीन काल में तारकासुर नामक एक राक्षस रहता था उसके तीन पुत्र थे तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली । भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया । अपने पिता की हत्या की खबर सुनकर तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए, तीनों ने मिलकर ब्रह्मा जी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की । ब्रह्मा जी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले की मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो, तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्मा जी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें बैठकर पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके । 1000 साल बाद जब हम मिले और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाए और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बांण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वहीं हमारी मृत्यु का कारण हो, ब्रह्मा जी ने उन्हें ये वरदान दे दिया । तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए ब्रह्मा जी के कहने पर उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया । तार कक्ष के लिए सोने का, कमलाक्ष के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया । इंद्र देवता इन तीनों से भयभीत होकर भगवान शिव के शरण में चले गए, इंद्र की बात सुनकर भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया और इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनी थी । चन्द्रमा और सूर्य से पहिये बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बने, हिमाचल धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बने, भगवान शिव खुद बांण बने और अग्निदेव बाण की नोक बने । इस दिव्य रथ पर खुद भगवान शिव सवार हुए, भगवानो से बने इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ । जैसे ही ये तीनों नगर एक सीध में आए, भगवान शिव ने बांण छोड़ें और तीनों का नाश कर दिया । इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा । यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ इसलिए इस दिन को त्रिपुरा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है । 

कार्तिक पूर्णिमा की दूसरी कथा ~

 द्रविड़ देश के राजा सत्यव्रत नदी में स्नान कर रहे थे, जब उन्होंने अंजलि में जल लिया तो उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आ गई । राजा ने मछली को पुन: नदी के जल में छोड़ दिया छोङते ही मछली ने कहा, राजा जी नदी के बड़े बड़े जो छोटे छोटे जीवों को खा जाते है, मुझे भी मार कर खा जाएंगे कृपया मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए । मछली की यह बात सुनकर राजा को बड़ी दया आई उन्होंने मछली को अपने कमंडल में डाल दिया, लेकिन एक ही रात में मछली का शरीर इतना बड़ा हो गया की कमंडल छोटा पड़ने लगा, तब राजा ने मछली को निकालकर मटके में डाल दिया वहाँ भी मछली एक ही रात मैं बड़ी हो गई, तब राजा ने मछली को निकालकर अपने सरोवर में डाल दिया अब वह निश्चिंत थे कि सरोवर में वह सुविधापूर्ण तरीके से रह गयी, लेकिन एक ही रात में मछली के लिए सरोवर भी छोटा पड़ने लगा । यह देखकर राजा को घोर आश्चर्य हुआ तब राजा समझ गए यह कोई साधारण मछली नहीं है उन्होंने उस मछली के समक्ष हाथ जोड़कर कहा कि मैं जान गया हूँ कि निश्चय ही आप कोई महान आत्मा है । यदि यह बात सत्य है तो कृपा करके बताइए कि आपने मत्स्य का रुप क्यों धारण किया है, तब राजा सत्यव्रत के समक्ष भगवान विष्णु ने प्रकट होकर कहा कि हे राजन हयग्रीव नामक देत्य ने चारो वेदों को चुरा लिया है । जगत में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है, मैं हयग्रीव को मारने के लिए हयग्रीव का रूप धारण करूँगा । आज से सातवे दिन भूमि जल प्रलय से समुद्र में डूब जाएगी तब तक तुम एक नौका बनवा लो और समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीर तथा सब प्रकार के बीज लेकर सप्तऋषियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना, प्रचंड आंधी के कारण जब नाव डगमगाने लगेगी तब मैं मत्स्य के रूप में तुम सबको बचाऊंगा, तुम लोग उस नाव को मेरे सींग से बांध देना, तब प्रलय के अंत तक मैं तुम्हारी नाव खींचता रहूंगा । उस समय भगवान मत्स्य ने नौका को हिमालय की चोटी से बांध दिया उस चोटी को नौकाबंध कहा जाता है, प्रलय का प्रकोप शांत होने पर भगवान विष्णु ने हयग्रीव का वध करके उससे वेद छीनकर ब्रह्मा जी को पुनः दे दिए । भगवान ने प्रलय समाप्त होने पर राजा सत्यव्रत को वेद का ज्ञान वापस दिया, राजा सत्यव्रत ज्ञान विज्ञान से युक्त हो मनुव्रत कहलाए । उस नौका में जो बच गए थे उन्हीं से संसार में जीवन चला, तो इसी के साथ कार्तिक पूर्णिमा की कथा समाप्त होती है ।

 भगवान विष्णु की जय ।

 भगवान शंकर की जय ।

समस्त देवी देवताओं की जय ।

ओम नमो भगवाते वसुदेवया ।


कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए जाने वाला उपाय ~

 दीपावली के बाद में जो कार्तिक पूर्णिमा आएगी उस कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो किसी जलाशय के पास मे जाकर नदी, तालाब, कुंड, कुंआ किसी जलाशय के पास जाकर अगर एक दिया जला देंगे तो उसको कार्तिक के तीस दिनो का पुण्य फल 1000 गुना होकर प्राप्त हो जाएगा । इसलिए हमारे यहाँ पर दीपावली को तो केवल दीपावली कहते हैं पर कार्तिक की पूर्णिमा को देव दीपावली कहते ।



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