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पवित्र कार्तिक मास कथा-14 |
ब्राह्मण ब्राह्मणी की कहानी ~
एक समय की बात है किसी नगर में एक ब्राह्मण दम्पति रहते थे, वो दोनों प्रतिदिन सात कोस दूर गंगा-यमुना नदी में स्नान करने जाते थे । इतनी दूर आने जाने से ब्राह्मण की पत्नी थक जाती थी । एक दिन उसने अपने पति से कहा की यदि हमारे एक पुत्र होता तो कितना अच्छा रहता, पुत्र के बहू आती तो हमे घर वापस आने पर खाना बना हुआ मिलता और बहू घर का काम भी कर देती । अपनी पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण ने कहा की तुमने बात तो सही कही है, चलो मैं तुम्हारे लिए एक बहू ला ही देता हूँ । ब्राह्मण ने कहा की एक पोटली में आटा डालकर उसमे कुछ मुहरें रख दो । ब्राह्मण के कहे अनुसार ब्रह्माणी ने पोटली बांधकर दे दी । पोटली लेकर ब्राह्मण चल पड़ा । सफर के दौरान ब्राह्मण ने यमुना नदी के किनारे बहुत ही सुंदर कन्याएं देखी, वो रेत के घर बनाकर खेल रही थी । सभी लड़कियां रेत से बने घर बिगाड़ कर अपने अपने घर जाने लगी तो उनमें से एक लड़की बोली मैं अपना घर नहीं बिगाड़ने दूंगी, मुझे तो रहने के लिए ये घर ही चाहिए । लड़की की बात सुनकर ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा की बहू बनाने के लिए यही लड़की उचित है । जब वह जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे पीछे उसके घर तक चला गया, वहाँ जाकर ब्राह्मण ने लड़की से कहा, बेटा कार्तिक मास चल रहा है, इसलिए मैं किसी के घर खाना नहीं खाता मैं अपने साथ आटा लेकर आया हूँ, तुम अपनी माता से पूछो कि क्या वो मेरे लिए आटा छानकर रोटी बना देगी, यदि वह रोटी बना देंगी तो मैं खाना खा लूँगा । लड़की ने जाकर अपनी माँ को सारी बात बता दी । माँ ने कहा ठीक है, जाकर ब्राह्मण देव से कह दो कि वह अपना आटा दे दे, मैं रोटी बना देती हूँ । जब वह आटा छाने लगी तो आटे में से मुहरें निकली । वह सोचने लगी जिसके आटे में इतनी मुहरें है उसके घर में कितनी मोहरे होंगी । जब ब्राह्मण खाना खाने बैठा तो लड़की की माँ ने उस ब्राह्मण से पूछा क्या आपका कोई लड़का है, यह सुनकर ब्राह्मण ने कहा मेरा लड़का तो काशी में पढ़ने गया हुआ है, लेकिन यदि तुम कहो तो मेरे बेटे की कटार है, उससे तुम्हारी बेटी विवाह कर सकती है और मैं उसे अपने साथ ले जाऊंगा । लड़की की माँ ने कहा ठीक है ब्राह्मण देव, इस पर लड़की की माँ ने लड़के की कटार से लड़की की शादी करके उसे ब्राह्मण के साथ भेज दिया । ब्राह्मण ने घर आकर कहा रामू की माँ दरवाजा खोलकर देखो मैं तुम्हारे लिए बहू लेकर आया हूँ । ब्राह्मण की पत्नी आयी और बोली हमारे तो कोई बेटा नहीं फिर बहू कहाँ से आ गई, दुनिया ताने मारती थी अब आप भी मारने लगे, ब्राह्मण बोला तुम दरवा़जा तो खोलकर देखो जब ब्रह्माणी ने दरवाजा खोला तो सामने बहू को खड़ा देखा । उसने उसका आदर सत्कार किया और उसे अंदर ले गई । अब जब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ कार्तिक का स्नान करने जाता तो पीछे से बहू घर का सारा काम करके और खाना बना कर रख देती थीं । इस तरह बहुत से दिन बीत गए ब्रह्माणी ने अपनी बहू से कहा की बहू कभी भी चूल्हे की आग मत बुझने देना और मटके का पानी खत्म मत होने देना । लेकिन एक दिन चूल्हे की आग अचानक बूझ गई । यह देखकर बहू घबरा गई और भागी भागी अपनी पड़ोसन के पास गई और कहने लगी बहन मेरे चूल्हे की आग बूझ गई है, मुझे थोड़ी आग दे दो मेरे सास ससुर सुबह 5:00 बजे के गए हुए है वो थके हारे घर आएँगे इसलिए मुझे उनके लिए खाना बनाना है । यह सुनकर पड़ोसन ने कहा, तू तो बावली है तुझे यह दोनों मिलकर पागल बना रहे हैं ,इनके कोई पुत्र नहीं है ये तो निसंतान है । बहू ने कहा नहीं नहीं ऐसा मत बोलो, इनका बेटा काशी में पढ़ने गया हुआ है । इस पर पड़ोसन ने कहा ये झूठ बोलकर तुझे ब्याह लाऐ है मेरी बात मान इनके कोई बेटा नहीं है अब बहू पड़ोसन की बातों में आ गई और कहने लगी अब आप ही बताओ मैं क्या करूँ, पड़ोसन ने कहा करना क्या है जब तुम्हारे सास ससुर आये तो जली हुई रोटियां बनाकर देना और बिना नमक की दाल बना कर देना, खीर की कङची दाल में और दाल की कङची खीर में डाल देना । पड़ोसन ने उसे अच्छे से सीखा पढ़ा दिया, फिर जब उसके साथ ससुर घर आये तो बहू ने ना तो उनका आदर सत्कार किया और ना ही उनके कपड़े धोए । जब उसने सास ससुर को खाना दिया तो सास बोली बहू आज ये रोटियां जली हुई क्यों हैं और दाल में भी नमक नहीं है । तब बहू ने पलटकर कहा एक दिन ऐसा खाना खा लेंगे तो कुछ नहीं बिगड़ जाएगा । सास ससुर को खरी खोटी सुनाकर वो फिर से पड़ोसन के पास गई और बोली की अब आगे क्या करना है । पड़ोसन ने कहा, अब तुम सातों को कोठो की चाबी मांग लेना । अगले दिन जैसे ही वह स्नान करने जाने लगे तो बहू सामने आकर खड़ी हो गईं और बोलीं मुझे तो सातों कोठों की चाबी चाहिए । ससुर के कहने पर सास ने उसे चाबी दे दी । सास ससुर के जाने के बाद बहू ने दरवाजे खोले तो देखा किसी मे अन्न भरा है तो किसी में धन भरा है, किसी कोठे में बर्तन पड़े हैं । जब उसने सबसे ऊपर वाला सातवाँ कोठा खोला तो देखा कि शिव जी पार्वती जी, गणेश जी, लक्ष्मी जी, पीपल, पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राय-दामोदर, तुलसी का बिलङा, गंगा-यमुना और 33 कोटि देवी देवता विराजमान हैं । वहीं पर एक लड़का चंदन की चौकी पर बैठा माला जप रहा है । यह देखकर उसने लड़के से पूछा तुम कौन हो तो लड़का बोला मैं तुम्हारा पति हूँ, अभी दरवाजा बंद कर दो, जब मेरे माता पिता आएँगे तब दरवाजा खोलना । यह सब देखकर बहू बहुत खुश हुई ।बहू 16 श्रृंगार कर सुंदर वस्त्र पहन कर अपने सास ससुर का इंतजार करने लगी । जब उसके सास ससुर घर पर आये तो उसने उनका आदर सत्कार किया और प्रेमपूर्वक खाना खिलाया और कहने लगी, माँ जी आप इतनी दूर गंगा-यमुना स्नान करने के लिए जाती हो तो थक नहीं जाती, आप घर पर ही स्नान क्यों नहीं कर लेती यह सुनकर सास कहने लगीं बेटा गंगा-यमुना घर पर तो नहीं बहती, तब उसने कहा हाँ माँ जी बहती है चलो मैं आपको दिखाती हूँ, जब बहू ने सातवाँ कोठा खोलकर दिखाया । तो सास ने भी वही देखा जो बहू ने देखा, तो सास ने उस लड़के से पूछा तुम कौन हो ,लड़के ने कहा मैं तुमारा बेटा हूँ । जिस तरह कार्तिक महाराज ने उस ब्राह्मण ब्राह्मणी पर कृपा की, वैसे ही सभी पर करना जो इस कहानी को कहे रहा है और हुंकारा भर रहा है ।
जय कार्तिक महाराज ।

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