कार्तिकेय: दक्षिण के रक्षक और आध्यात्मिक गाथा/Kartikeya: The Protector of the South and a Spiritual Legend :~
![]() |
भगवान कार्तिकेय: दक्षिण दिशा के रक्षक देवता |
भगवान कार्तिकेय बारे में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारा है और यह "देवताओं के सेनापति " कहे जाते हैं और भगवान शिव और माँ पार्वती के पुत्र भी हैं और भगवान गणेश के बड़े भाई भी कहे जाते हैं । भारत के साउथ/दक्षिण में यानी तमिलनाडु में भगवान कार्तिकेय जी की पूजा की जाती है । वह सबसे लोकप्रिय भगवान के रूप में दक्षिण मे पूजे जाते हैं जिनको वहां पर "भगवान मुर्गन और कुड़ुख" के नाम से भी जाना जाता है ।
भगवान कार्तिकेय "साउथ इंडिया/दक्षिण भारत के साथ साथ श्रीलंका, मलेशिया व सिंगापुर " में पूजे जाने वाले भगवान शिव और मां पार्वती के ही बड़े पुत्र कार्तिकेय जी ही है।
हम यह भी जानेंगे भगवान कार्तिकेय/कुड़ुख/मुर्गन जी के जन्म के रहस्य से लेकर उनको छह सिर वाले देव क्यों कहा जाता है ।
आपको हम यह बता दें कि स्कंद पुराण के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि तारकासुर नाम का एक दैत्य, देवताओं और तीनों लोकों को जीतने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या कर रहा था । तारकासुर की तपस्या को देखकर भगवान शिव जी इतने ज्यादा प्रसन्न हो गए कि वह उसको वरदान देने के लिए प्रकट हो गए और तब ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए थे तो तारकासुर ने भगवान शिव के सामने अमरता का वरदान मांगा ताकि उसे कोई भी युद्ध में ना हरा सके और ना ही कोई उसको मार सके, तो इस प्रकार का वरदान जब तारकासुर ने भगवान शिव से मांगा तब भगवान शिव ने तारकासुर से यह कहा कि मैं तुम्हें अमरता का वरदान तो नहीं दे सकता तुम कुछ और मांग लो वो मैं तुम्हें दे दूंगा, क्योंकि अमरता का वरदान नियति के खिलाफ है क्योंकि कोई भी जीव अगर इस मृत्यु लोक पृथ्वी पर जन्म लेता है तो उसकी मृत्यु होना निश्चित है । जब तारकासुर ने भगवान भगवान शिव जी के द्वारा कही गई यह बातें सुनी तो वह थोड़ा सोच में पड़ गया और फिर थोड़ा सोचने के बाद उसने यह दिमाग लगाया कि भगवान शिव जी की तो शादी हुई ही नहीं है और जब शादी ही नहीं हुई है तो उनकी कोई संतान होगी भी नहीं और वैसे भी भगवान शिव अघोर साधु हैं तो वह कभी जीवन में शादी करेंगे ही नहीं, मन में यह सब विचार करने के बाद तारकासुर मुस्कुराते हुए भगवान शिव जी से कहता है कि प्रभु आप मुझे भले ही अमरता का वरदान ना दे लेकिन आप मुझे यह वरदान दे, कि जब भी मैं किसी से युद्ध करूं तो उस युद्ध में मुझे कभी भी पराजय ना हो और ना ही वह मेरा वध कर सके । लेकिन अगर कोई युद्ध में मुझे हरा सकता है और मेरा वध कर सकता है तो वह सिर्फ आपका पुत्र ही कर सकता है, ऐसा मुझे आप वरदान दीजिए । यह वरदान मांगने के बाद भगवान शिव जी ने तारकासुर को तथास्तु कह दिया । तब ऐसा कहा जाता है कि जब तारकासुर को यह वरदान मिल गया तो वह पहले से और ज्यादा क्रूर हो गया और पूरी पृथ्वी पर और ज्यादा आतंक और देवताओं के बीच हाहाकार मचा दिया था ।
अब तारकासुर के इस इस आतंक से सभी देवता काफी ज्यादा चिंतित हो गए तब ऐसा कहा जाता है कि सारे देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे । फिर भगवान विष्णु ने सभी देवताओं को यह सुझाव दिया, कि वह कैलाश पर्वत जाकर भगवान शिव जी से यह कहे कि वह माता पार्वती से विवाह कर ले ताकि उनसे जो उत्पन्न पुत्र होगा, वह तारकासुर का वध कर दे । तब भगवान शिव जी और मां पार्वती का विवाह होता है लेकिन भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह को रोकने के लिए तारकासुर और अन्य दैत्यों के द्वारा काफी ज्यादा षड्यंत्र रचा गया, लेकिन वह सफल नहीं हुए और अंत में मां पार्वती और शिव भगवान का विवाह हो जाता है ।
भगवान कार्तिकेय का जन्म कैसे हुआ/कार्तिकेय की उत्पत्ति कैसे हुई थी?/Kartikeyaji's Origin: From the Divine Spark to the Warrior God :~
ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव जी और माता पार्वती जी का विवाह हो जाता है । कुछ समय बाद सभी देवता गण कैलाश पर्वत पर भगवान शिव जी से आग्रह करने के लिए पहुंचते हैं, कि वो संतान उत्पत्ति करें ताकि तारकासुर का वध हो सके । जब सारे देवता गण कैलाश पर्वत पर पहुंचते है तब उन्हें पता चलता है कि शिवजी और माता पार्वती तो विवाह के पश्चात एकांतवास में जा चुके हैं । अब सभी देवता विवश और निराश होकर देवदारू वन मे जा पहुंचते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि शिवजी और माता पार्वती इसी वन की एक गुफा में निवास कर रहे हैं । फिर जब सभी देवताओं ने शिव भगवान से मदद की गुहार लगाई तो उस गुफा के अंदर कोई भी आवाज जा ही नहीं पा रही थी, तब ऐसा कहा जाता है कि अग्नि देवता अपने अग्नि रूप में प्रकट होकर उस गुफा के अंदर जैसे ही बढ़े तो भगवान शिव और मां पार्वती गहन साधना में लीन थे, लेकिन जैसे ही भगवान शिव और मां पार्वती को अग्निदेव के आने की आहट मिली । आहट सुनकर वो दोनों सावधान हो गए तब गहन साधना में लीन भगवान शिव को अपनी साधना को त्याग कर अग्निदेव के समक्ष आना पड़ा लेकिन इतने में कामात और शिव जी का अनजाने में ही जो सीमन था वो रिलीज हो गया और तब अग्निदेव ने उस अमोग वर को कबूतर का रूप धारण करके ग्रहण कर लिया और यह सभी घटनाक्रम तारकासुर को भी पता चल गया, कि भगवान शिव और मां पार्वती अपने पुत्र को जन्म देने वाले हैं तब इसी बीच तारकासुर भी वहां पहुंच जाता है लेकिन अग्निदेव उस शक्ति पुंज को तारकासुर से बचाते हुए उसे लेकर उड़ जाते हैं । लेकिन उस शक्ति पुंज का ताप इतना ज्यादा था, कि अग्निदेव से भी सहन नहीं होता है इसी कारण से उस अमोग वर को गंगा देवी को सौंप देते हैं । जब देवी गंगा उस दिव्य अंश को लेकर जाने लगती हैं तब उसी शक्ति से गंगा का पानी भी बहुत तेजी से उबलने लगता है यानी मां गंगा शिव के दिव्य अंश की शक्ति के ताप को बिल्कुल भी सहन नहीं कर पाती हैं । तब भयभीत होकर मां गंगा उस दिव्य अंश को जैसे ही शरण वन में लाकर स्थापित करने के लिए जाती हैं गंगा माता के जल में बहते हुए वो दिव्य अंश छह भागों में विभाजित हो जाता है । ऐसा कहते हैं कि जैसे ही वो दिव्य अंश छह भागों में बंट जाता है उसके अलग होने के साथ ही छह अलग अलग शिशुओं का जन्म हो जाता है ।
जाने आखिर भगवान कार्तिकेय जी के छ: सिर ही क्यों हैं/Know why Lord Kartikeya has only six heads :~
जैसे तैसे मां गंगा उन नवजात छह शिशुओं को शरण वन में ले जाकर छोड़ती हैं तो वहां पर विहार कर रही छ: कृतिका ऋषियों की पत्नियों की नजर उस बालक पर पड़ती है । यह छ: कृतिका देवियां कोई और नहीं सप्त ऋषियों की पत्नियां होती हैं और इन सभी देवियों को यह वरदान प्राप्त होता है, कि वो इस सृष्टि के 64 आयामों में कभी भी किसी भी समय आ जा सकती हैं और इस समय पृथ्वी के आयाम में घूम रही थी । जब उनकी नजर इन छ: शिशुओं पर पड़ी तो उनको देखकर तो उन सभी ऋषि पत्नियों में मातृत्व का भाव जाग उठा, उसके पश्चात वे उन सभी बालकों को लेकर कृतिका लोक चली गई और वहां पर उन बच्चों का पालन पोषण करने लगी । अब जब इन सब घटना की जानकारी नारद जी ने भगवान शिव और माता पार्वती जी को बताई तब माता पार्वती और भगवान शिव दोनों अपने पुत्र से मिलने के लिए काफी ज्यादा व्याकुल हो उठे और फिर वो दोनों लोग कृतिका लोक चल पड़े अपने पुत्र की खोज में । ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही माता पार्वती ने अपने बच्चों को देखा तब इतनी ज्यादा भावुक हो उठी कि उन्होंने उन छ: बालकों को इतनी जोर से गले लगाया, जिसकी वजह से वो छ: शिशु एक बन गए और उनके सर छ: हो गए तथा यह सब दृश्य देखकर जितनी भी ऋषि पत्नियां थी जिन्हें कृतिकाएं कहा जाता है वो भी काफी ज्यादा भावुक हो गई । लेकिन उनके द्वारा शिव और माता पार्वती के पुत्रो का लालन पालन करने के कारण उस बालक का नाम कार्तिकेय पड़ गया । आपको पहले ही बता दिया गया है कि वह छ: बालक थे लेकिन मां पार्वती ने उन छ: बालकों को एक साथ इतनी तेजी से गले लगाया कि वह छ: की जगह एक हो गए, लेकिन उनके सर छ: रहे जिसकी वजह से ही ऐसा कहा जाता है कि कार्तिके भगवान के छ: सिर हैं । उसके बाद जब कार्तिकेय भगवान कैलाश पर्वत आए तो माता पार्वती उनकी गुरु बनी और उन्हें हर एक युद्ध कौशल सिखाया । उसके बाद ऐसा कहा जाता है कि जब तारकासुर से युद्ध हुआ तो उन्होंने तारकासुर का वध कर दिया और उस युद्ध को जीतने की खुशी में ही देवताओं ने उन्हें अपना सेनापति नियुक्त कर दिया, तभी से कहा जाता है कि "भगवान कार्तिकेय सभी देवताओं के सेनापति हैं" ।
जाने दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं/Why is Lord Kartikeya So Important in South India? :~
हमारे प्राचीन ग्रंथों में इसके सबूत मिलते हैं यानी प्राचीन ग्रंथों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि एक बार ऋषि नारद मुनि एक फल लेकर कैलाश पर्वत गए और वहां इस फल को लेकर भगवान गणेश और कार्तिकेय जी में बहस हो गई । तब ऋषि नारद मुनि ने यह शर्त रख दी कि जो भी इस पृथ्वी यानी संसार के तीन चक्कर लगाकर वापस पहले कैलाश पर्वत पर आ जाएगा उसको यह फल मिलेगा और वो सबसे महान योद्धा साबित होगा । तब भगवान कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर सवार होकर पूरे संसार की यात्रा करने के लिए निकल पड़े, लेकिन वहीं भगवान गणेश जी ने दिमाग लगाया और उन्होंने पूरे संसार यानी पृथ्वी का चक्कर ना लगाते हुए अपने माता-पिता यानी भगवान शिव और मां पार्वती के तीन चक्कर लगा दिए । उन्होंने कहा कि मां पार्वती और भगवान शिव ही मेरे संसार हैं, अब यह बात सुनकर भगवान शिव काफी ज्यादा प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश भगवान को विजयता घोषित कर दिया और उनको फल भी दे दिया । अब जब थोड़ी देर बाद भगवान कार्तिकेय पृथ्वी के तीन चक्कर लगाकर वापस आए तो उन्होंने देखा कि गणेश भगवान को विजेता घोषित कर दिया गया है और वह फल भी खा रहे हैं, तो वो भगवान शिव से काफी ज्यादा क्रोधित हुए कि उन्होंने ऐसे कैसे गणेश जी को विजेता घोषित कर दिया । तब भगवान शिव और मां पार्वती कहते हैं कि गणेश ने हमें यानी अपने माता पिता को ही अपना संसार माना और हमारे तीन चक्कर लगा दिए जिसकी वजह से यह सिद्ध होता है कि गणेश अपने दिमाग से काफी ज्यादा तेज और चतुर है इसी वजह से उसको विजेता घोषित कर दिया गया । लेकिन इस बात से भगवान कार्तिकेय काफी ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं और उन्हें ये अन्याय लगता है और फिर भगवान कार्तिकेय उनसे क्रोधित होकर दक्षिण भारत की ओर चले जाते हैं, वहां जाकर वह अगस्त्य ऋषि से मिलते हैं । जब अगस्त्य ऋषि से भगवान कार्तिकेय जी की मुलाकात होती है तो उनको यह पता चलता है कि साउथ में यानी उस जमाने के दक्षिण भारत में राक्षसों का काफी ज्यादा आतंक रहता है और वो आये दिन ऋषि मुनियों की पूजा पाठ में विघ्न डालते रहते हैं और अन्य मनुष्यों को भी परेशान करते रहते हैं । तब उनके इस आतंक को खत्म करने के लिए भगवान कार्तिकेय ने उनसे युद्ध करते हैं और वहां पर सभी दानवो का अंत कर देते हैं । और इनका सबूत है, कुमार पर्वत जहां पर उन्होंने समाधि ली थी यानी सुभ्रमण्य नामक जगह पर उनको आराम मिला यानी वो युद्ध करते करते उब गए थे कि उनको यह समझ में आ गया था कि हजारों सालों तक युद्ध लड़ने के बाद भी इस तरीके से दुनिया को बदला नहीं जा सकता है इसीलिए उन्होंने सुब्रमण्यम पर्वत पर आकर ऋषि अगस्त्य के द्वारा निर्देश देने के पश्चात उन्होंने सारी हिंसा छोड़ दी और अंतिम बार अपनी तलवार को कर्नाटक की घाटी सुब्रमण्यम में साफ किया और उन्होंने कुछ समय तक वहां ध्यान किया । और फिर पहाड़ पर भगवान कार्तिकेय चले गए जिसे आज हम "कुमार पर्वत" के नाम से जानते हैं और अब चूंकि भगवान कार्तिकेय को सारी योग कलाएं तो पता ही थे और एक महान योद्धा होने के नाते उन्होंने अपना पूरा शरीर ही त्याग कर दिया ।
जाने सदियो से कर्नाटक के रक्षक देवता के रूप मे भगवान कार्तिकेय जी की पूजा-पाठ क्यों कि जाती आ रही है/Know why Lord Kartikeya is worshipped as the protector deity of Karnataka for centuries :~
भारत के दक्षिण में यानी साउथ इंडिया में ज्यादातर समय व्यतीत करने के कारण ही भगवान कार्तिकेय को सबसे ज्यादा दक्षिण भारत मे पूजा जाता है, और इसी वजह से उन्हें "कर्नाटक का रक्षक देवता" भी कहते हैं और जो भी यहां पर मनोकामना लेकर आते हैं उनकी सभी मनोकामना पूर्ण भी होती हैं । भगवान कार्तिकिय को "न्याय का देवता" भी कहा जाता है । भगवान कार्तिकिय के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी कोई भी युद्ध नहीं हारा था ।
जय भगवान शिव जी की ।
जय मां पार्वती जी की ।
जय भगवान कार्तिकेय जी की ।
जय भगवान गणेश जी की ।
0 टिप्पणियाँ