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कार्तिक मास कथा-आठो वारों की कथा |
आठो वारों व बूढ़ी माई की कथा/The story of the eight days and the old mother ~
कार्तिक मास के आठों वारों की कहानी लेकर आए हैं एक समय की बात है किसी गांव में एक बूढ़ी माँ अपने बेटे और बहू के साथ रहती थी । कार्तिक का महीना आया तो वो बूढ़ी माई सुबह सुबह गंगा स्नान के लिए जाने लगी तो बहू से बोली मेरा बेटा उठे तो उसे रोटी दे देना, बहू बोली ठीक है मैं दे दूंगी सुबह जब बेटा उठा तो बोला माँ मुझे रोटी दो ये सुनकर उसकी पत्नी आयी और बोली ना तो तुम्हारी माँ यहाँ है और ना ही रोटी है, कुछ कमा कर लाओ तो ही मैं तुम्हें रोटी दूंगी वो बोला मैं तो कमाना नहीं जानता हूँ फिर क्या करूँ, लेकिन उसकी पत्नी ने उसकी एक नहीं सुनी तो वो बोला अच्छा तुम चार रोटी आम के अचार के साथ ही दे दो । बहू ने चार रोटियां बनाई और अपने पति को दे दी और बोली अब कमाकर ही वापस लौटना वो बेचारा रोटियां लेकर अपने घर से चल पड़ा, आगे जाकर कुएं की मुंडेर पर बैठ गया और भगवान को याद करने लगा और बोला हे प्रभु मैं तो कमाना नहीं जानता । तब कार्तिक के महाराज उसकी बात सुनकर ब्राह्मण का वेश बनाकर आये और बोलने लगे तुम इतने उदास क्यों बैठे हो, वो बोला क्या करूँ मेरी पत्नी ने कहा है कि जब कमाकर लाओगे तो ही वापस घर लौटना तभी तुम्हे रोटी मिलेगी, लेकिन मैं तो कमाना नहीं जानता । उसकी बात सुन भगवान बोले मैं भी कमाना नहीं जानता लेकिन मैं आठो वारों के नाम जानता हूँ जिनसे तुम्हारे घर अटूट भंडार भर जाएंगे । तो वो बोला आप मुझे भी आठों वारो के नाम बता दो । भगवान बोले तुम चावल के दाने लेना और पानी की घंटी लेना, जो बर्तन ढके हुए हों, उनका मुँह खोल देना, जो घर के बर्तन उल्टे पड़े हों, उन्हें सीधा कर देना ।
भगवान के रूप में ब्राह्मण ने कथा कही और उसने सुनी - रविवार सोमवार मंगलवार बुधवार बृहस्पतिवार शुक्रवार शनिवार आठो वारों का आसरा भरियो पीहर सासरा ऐसी कहानी सुनकर वो अपने घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने पूछा क्या हुआ कुछ कमा कर लाई तो वो बोला हाँ आठो वारो का नाम कमा कर लाया हूँ । पत्नी ने सोचा चलो कुछ तो लाऐ है पति फिर बोला की चावल के दाने और पानी की घंटी लाओ जो बर्तन उल्टे पड़े हैं उन्हें सीधा कर दो, जो ढके हैं उनका मुँह खोल दो । पति ने कहानी कही और पत्नी ने कहानी सुनी रविवार सोमवार, मंगलवार बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार आठो वारों का आसरा भरियो पीहर सासरा ऐसी कहानी कहते ही उनके घर के भंडार भरते चले गए । एक दिन वो अपनी पत्नी से कहने लगा बेटी के ससुराल जाकर उससे मिल आता हूँ, बेटी के यहाँ गया तो बच्चे बोले की नाना आए है नाना आए हैं बेटी बोली नाना क्या आये हैं दो दिन की मुफ्त रोटियां तोड़ने आए हैं । फिर वो अपनी बेटी से कहने लगा बेटी मेरे आठो वारों की कहानी सुन ले, बेटी ने जवाब दिया पिताजी मेरा मुँह झूठा है, ये बात सुनकर वो भूखा ही सो गया । अगले दिन बेटी को पिता पर तरस आ गया तो कहने लगी, पिताजी आप अपनी कहानी अब मुझे सुना दो तो पिता बोला चावल के दाने लाओ, पानी की घंटी लाओ, जो बर्तन उलटे है उन्हें सीधा करो, जो ढके हैं उनका मुँह खोल दो । कहानी सुनी रविवार सोमवार मंगलवार बुधवार बृहस्पतिवार शुक्रवार शनिवार आठो वारों का आसरा भरियो पीहर सासरा बेटी के भी अटूट भंडार भरते चले गए, वो टोकरे भर भर कर बांटने लगी । बेटी की पड़ोसन ने जब कहा की तुम तो कहती थी की तुम्हारा बाप कुछ नहीं लाया, ये जो इतना सामान तुम बांट रही हो ये कहाँ से आया है, बेटी ने जवाब दिया मेरे पिता तो खाली हाथ ही आये थे, ये तो आठों वारों की कहानी का फल है पड़ोसन बोली अपने पिता को कहो की वो हमें भी आठों वारो की कथा सुना दे । पिता ने कहा आज तो मेरा मुँह झूठा हो गया है, लेकिन कल मैं कहानी सुना दूंगा । दूसरे दिन पिता ने बेटी की पड़ोसन को भी आठों वारों की कहानी सुनाई, जिससे उसके घर में भी अटूट भंडार भरते चले गए । हैं कार्तिक के महाराज जैसे ब्राह्मण की आठों वारो की कहानी से सब के भंडार भर गए, उसी तरह से कथा को कहने वाले, सुनने वाले, हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना ।
जय कार्तिक महाराज ।

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